तमिलनाडु में ‘राइट टू सीट’ का कानून लागू हुआ. ‘राइट टू सीट’ का अधिकार महिला कर्मचारियों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद साबित हो रहा है. महिलाएं कई घंटों तक खड़ी रहती हैं और दुकानों और स्टोर्स में काम करती हैं. रिटेल दुकानों में काम करने वाली महिलाएं लगातार 10 घंटे खड़ी रहती हैं. जब यह महिलाएं घर जाती हैं तो उनके पैरों के तलवों और घुटनों में तेज दर्द होता है.
रिटेल कर्मचारियों की दुर्दशा को देखते हुए तमिलनाडु, छोटे स्टोर्स और दुकानों में कानूनी रूप से कर्मचारियों को ‘राइट टू सीट’ का अधिकार देने वाला दूसरा राज्य बन गया है. कायदे से, स्टोर मालिकों को कर्मचारियों के बैठने की व्यवस्था करने और काम के दौरान जब भी संभव हो उन्हें आराम करने की अनुमति देने का आदेश दिया गया है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, लेबर एंड ऐम्प्लोइमेंट मंत्री सी.वी. गणेशन ने घोषित कर बताया कि, ‘राइट टू सीट’ बिल को राज्य के कार्यबल के सदस्यों द्वारा स्वागत किया गया है. द तमिलनाडु शोप्स एंड एस्टेब्लिशमेंटएक्ट, 2021, केरल के एक बिल से प्रेरित है, जिसे जनवरी 2019 में कानून बनने से पहले पहली बार जुलाई 2018 में पेश किया गया था.
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कपड़ों की दुकानों में काम करने वाले कर्मचारियों का कहना है कि उन्हें पूरी शिफ्ट के दौरान केवल 20 मिनट का लंच ब्रेक मिलता है. हमारे पैरों को आराम देने के लिए सिर्फ ये 20 मिनट मिलते थे. वहीं, जब दुकान में काम करने वाले लोगों की अन्य समस्याओं की बात आती है, तो दुकान में ग्राहक होने पर इन कर्मचारियों को दुकान के फर्श पर बैठने की अनुमति नहीं है.
देश में कई दुकानों और रिटेल स्टोर में काम करने वाले कर्मचारियों को खड़े होकर काम करना पड़ता है. लेकिन अब यह परिदृश्य बदलेगा. तमिलनाडु सहित दक्षिणी राज्यों में बड़े परिवारों द्वारा आभूषण, साड़ियों और कपड़ों के स्टोर्स चलाए जाते हैं. वे ग्राहकों तक सामान पहुंचाने के लिए कम आय वाले गरीब परिवारों की महिलाओं को काम पर रखते हैं.
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साल 2018 में केरल ने भी ऐसा ही कानून लागू किया था. कपड़ा दुकान में काम करने वाले कर्मचारियों ने इस अधिकार का विरोध किया था. कर्मचारियों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए कानून बनाया गया था. तमिलनाडु में लंबे समय से कर्मचारियों की भी यही मांग थी. दुकान में काम करने वाले लोग 10 से 14 घंटे तक खड़े रहते हैं. बाद में वे घर जाते और वहां भी अपना काम करते है तो उनके पास आराम का वक्त ही नहीं बचता था. लेकिन यह कानून से अब इन मजदूरों को राहत मिलेगी.
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केरल से शुरू हुआ था आंदोलन
पेशे से दर्जी पी. वीजी ने केरल में ‘राइट टू सीट’ का अधिकार आंदोलन शुरू किया. उन्होंने संघ का गठन किया. संघ उन कर्मचारियों के लिए था जो असंगठित क्षेत्र में सहायक के रूप में काम करते हैं, जैसे कि दुकानें. जिन्हें काम पर बैठने की इजाजत नहीं है. इसके लिए संघ दुकानों पर जाकर बैठने की व्यवस्था की जांच करता है. बैठक नहीं होने पर शिकायत दर्ज कराकर कानून लागू किया जाता है. आज उनके आंदोलन ने केरल के साथ-साथ तमिलनाडु में रंग ला दिया है और यह कानून हर जगह लागू किया जा रहा है.
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