वेद मादि मदिमा तुम गाई।
अकथ अनादद भेद नदिंपाई ॥
अर्थात: हे प्रभु! आपका भेद सिर्फ आप ही जानते हैं, क्यूंकि आप अनादि काल से विद्यमान हैं, आपके बारे में वर्णन नहीं किया जा सकता है, आप अथक हैं। आपकी महिमा का गान करने में तो वेद भी समर्थ नहीं हैं।
हजारों वर्ष पुराने मंदिर भोरमदेव बीरधाम का इतिहास:- ‘छत्तीसगढ़ का खजुराहो’
भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ में स्थित है। यह मंदिर कबीरधाम जिले से 18km दूरू तथा रायपुर से 125km दूर चौरा गााँव में स्थित है। भोरंदेव मंदिर लगभग एक हजार वर्ष पुराना मंदिर है। मंदिर के चारो ओर मैकल पर्वतसमूह हैं, जिनके मध्य हरी भरी घाटीयां हैं। मंदिर के सामने एक सुंदर तालाब भी है। इस मंदिर की बनावट खजुराहो तथा कोणार्क के मंदिर के समान है। जिसके कारण लोग इस मंदिर को ‘छत्तीसगढ का खजुराहो भी कहते हैं। ये मंदिर एक एतिहासिक मंदिर है।
Bhoramdev Templeभोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ , Image Credit: Google Image
11 वीं शदी में नागवंशी राजा गोपाल देव द्वारा निर्माण:-
भोरमदेव मंदिर को 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजा गोपाल देव ने बनवाया था। ऐसा कहा जाता है कि गोड राजाओं के देवता भोरमदेव थे एवं वे भगवान शिव के उपासक थे। भोरमदेव , शिवजी का एक नाम है, जिसके कारण इस मंदिर का नाम भोरमदेव पडा। मंदिर के मंडप में रखी हुई एक दाढी-मूंछ वाले योगी की बैठी हुई मूर्ति पर एक लेख लिखा है। जिसमें इस मूर्ति के निर्माण का समय कल्चुरी संवत 8.40 बताया गया है। इससे ये पता चलता है कि इस मंदिर का निर्माण छठवे फणी नागवंशी राजा गोपाल देव के शासन काल में हुआ था। कल्चुरी संवत 8.40 का अर्थ 10 वीं शताब्दी के बीच का समय होता है।
भोरमदेव मंदिर का निर्माण Image Credit: google image
भोरमदेव मंदिर की विशेषताएं:-
- भोरमदेव मंदिर मुख्य रूप से सूखे हुए या जले हुए मिट्टी के ईंटों से बनाये गए थे। ये 2 और 3 शताब्दी के बीच निर्मित पहला मंदिर था।
- मंदिर का मुख पूर्व की ओर है। मंदिर नागर शैली का एक सुन्दर उदाहरण है।
- मंदिर में तीन ओर से प्रवेश किया जा सकता है।
- मंदिर एक पााँच फुट ऊंचे चबुतरे पर बनाया गया है।
- तीनों प्रवेश द्वारों से सीधे मंदिर के मंडप में प्रवेश किया जा सकता है।
- मंडप की लंबाई 60 फुट है और चौडाई 40 फुट है।
- मंडप के बीच में 4 खंभे हैं तथा किनारे की ओर 12 खंभे है जिन्होने मंडप की छत को संभाले रखा है।
- सभी खंबे बहुत ही सुंदर एवं कलात्मक हैं जो कि छत का भार संभाले हुए है।
- मंडप में लक्ष्मी, विष्णु एवं गरूड की मूर्ति रखी है तथा भगवान के ध्यान में बैठे हुए एक राजपुरुष की मूर्ति भी रखी हुई है। मंदिर के गर्भगृह में भी अनेक मूर्तियाँ रखी हुई है। तथा इन सबके बीच में एक काले पत्थर से बना हुआ शिवलिंग स्थापित है।
भोरमदेव Temple Image Credit: Google Image
मंदिर के गर्भगृह में एक पंचमुखी नाग की मूर्ति स्थापित:-
गर्भगृह में एक पंचमुखी नाग की मूर्ति है, साथ ही नृत्य करते हुए गणेश जी की मूर्ति तथा ध्यानमग्न अवस्था में राजपुरुष एवं उपासना करते हुए एक स्री पुरुष की मूर्ति भी है। मंदिर के ऊपरी भाग का शिखर नहीं है। मंदिर के चारो ओर बाहरी दीवारो पर विष्णु,शिव, चामुंडा तथा गणेश आदि की मूर्तियाँ स्थापित हैं। इसके साथ ही लक्ष्मी-विष्णु एवं वामन अवतार की मूर्ति भी दीवार पर लगी हुई है। देवी सरस्वती की मूर्ति तथा शिव की अर्धनारीश्वर की मूर्ति भी यहां लगी हुई है।
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मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित है मडवा महल:-
भोरमदेव परिसर का अंतिम मंदिर चरखी महल (Cherki Mahal) जहां आसानी से पंहुचा नहीं जा सकता। ये मंदिर सघन वन के बीच स्थित है। मुख्य मंदिर से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित मडवा महल (Madwa Mahal) एक पश्चिम मुखी मंदिर है जहां एक शिव लिंग को विराजित किया गया है। चूंकि मंदिर को मैरिज हॉल या पंडाल (मनगढंत संरचना) की तरह बनाया गया था, जिसे स्थानीय बोली में “मड़वा” के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण नगवंशी रामचंद्र देव और हयवंशी रानी राज कुमारी अंबिका देवी की शादी की याद में किया गया था, जो 1349 में हुआ था।
भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ।
प्रवेश द्वार या मंडप की छत पर एक जीर्ण शीका लगा था, जिसे काफी गहराई से बनाया गया है। इस मंदिर की बाहरी दीवारों में कामसूत्र में वर्णित कामुक यौन मुद्राओं में 54 चित्र हैं, जो नागवंशी राजाओं द्वारा प्रचलित संस्कृति को दर्शाते हैं। ये मंदिर शिवलिंग रूपीत है। मंदिर के गर्भगृह की छत पर कमल की सजावट है।
देखें यह वीडियो: जानिए शिवलिंग की परिक्रमा का क्या है महत्व?
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