(Dadabhai Naoroji) दादा भाई नौरोजी पहले भारतीय थे जिन्हें ब्रिटिश संसद में अपनी आवाज उठाने का मौका मिला था। नौरोजी प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद और बुद्धिजीवी व्यक्ति थे। दादा भाई का जन्म 4 सितंबर, 1825 में हुआ था। मां मानेकबाई ने उनका पालन-पोषण किया। मात्र चार वर्ष के थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया। माता ने बचपन से ही उनकी शिक्षा में ज्यादा जोर दिया। वे स्कूल में तेजस्वी विद्यार्थी के रूप में जाने जाते थे, और उनका स्कूली जीवन अधिक उज्ज्वल रहा।
एल्फिन्स्टन कॉलेज में गणित के प्रोफेसर बने दादा भाई:-
पुरानी परंपराओं के आधार पर उनका विवाह 11 वर्ष की उम्र में गुलबाई से हुआ था। जब 15 वर्ष के हुए तब दादा भाई एल्फिन्स्टन इंस्टिट्यूट में साहित्य की पढ़ाई करने गए। इसके पश्चात वर्ष1845 में उसी कॉलेज (एल्फिन्स्टन) में गणित विषय के अध्यापक बने। उस दरमियान कॉलेज में ब्रिटिश प्रोफेसर हुआ करते थे, उनके द्वारा नौरोजी को ‘The Promise of India’ की उपाधि दी गई।
लिबरल पार्टी से ब्रिटेन की पार्लियामेंट में बने सांसद ‘दादा भाई नौरोजी’ image credit: Google Image
ब्रिटिशों की रणनीति का पर्दाफास करने के लिए राजनीति में रखा कदम:-(Dadabhai Naoroji)
बाद में, उन्होंने राजनीति में अपना कदम रखा। क्यूंकी ब्रिटिश भारत से कच्चा माल ले जाकर, वहां कंपनियां खोलते थे। और भारत में उन्हीं चीजों को अधिक दाम में बेचते थे, यह बात नौरोजी को पसंद नहीं आई। उन्होंने अंग्रेजों की रणनीति को समझा और पर्दाफास किया। उनको शुरुआती दौर से ही यह बात समझ आ गई थी कि भारतीयों का शोषण किया जा रहा है। इसलिए ज्ञान प्रसारक मंडली बनाई। धीरे-धीरे राजनीति में भी आगे बढ़ते गए। उन्होंने स्वयं की कंपनी कॉटन ट्रेडिंग का निर्माण किया। जिसमें भारतीय मजदूरों को रोजगार दिलाया, और आदर-सम्मान के साथ उन्हें काम करने का अवसर प्रदान किया।
Indian Revolutionary Dada Bhai Naoroji Image credit: Google Image
1892 में लिबरल पार्टी से ब्रिटेन की पार्लियामेंट में बने सांसद:-
वर्ष 1867 में स्थापित ईस्ट इंडिया एसोसिएशन में दादाभाई का बड़ा योगदान रहा। इसके पश्चात 1892 में लिबरल पार्टी से ब्रिटेन की पार्लियामेंट में सांसद बने। ब्रिटिशों चालाकियों से भारतीय जनता को जागरूप करने के लिए उन्होंने वर्ष 1851 में गुजराती भाषा में ‘रस्त गोफ्तार’ नामक पत्रिका निकाली। जिसमें उन्होंने राजनीतिक और सच्ची घटनाओं के मुद्दों पर लिखना शुरू किया। देश की जनता को सजग बनाने के लिए उन्होंने यह कदम उठाया। आगे बढ़ते गए और भाषण देना भी शुरु किया।
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‘Poverty and Un-British Rule in India’ पुस्तक के लेखक….
लंदन के विश्व विद्यालय में गुजराती के प्रोफेसर बने। 1869 में भारत वापस लौटने के बाद 1885 में ‘बंबई विधान परिसद’ के सदस्य बने। नौरोजी ने ‘पावर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया’ (Poverty and Un-British Rule in India) नामक पुस्तक लिखी। इसके साथ ही वर्ष 1886 से 1906 ई. तक दादा भाई इंडियन नेशनल कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में चुने गए।
‘पावर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया’
देश-विदेश में दादा भाई के नाम पर मार्ग बनाए गए:-
मुंबई में एक मार्ग आज भी दादाभाई नौरोजी के नाम से जाना जाता है। मुंबई के अलावा पाकिस्तान के कराची में भी एक मार्ग दादाभाई के नाम पर बनाया गया। भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित नौरोजी नगर अधिक प्रसिद्ध है। दादा भाई के नाम पर लंदन में नौरोजी स्ट्रीट है। साल 1906 में एक अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने स्वशासन (Home rule) की मांग सार्वजनिक रूप से व्यक्त की थी, और सबसे पहले देश को ‘स्वराज्य’ का नारा देने वाले दादा भाई ही थे।
Dada Bhai Naorojii Marg, Image Credit: Google Image
भारत के निर्माण और स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी दादाभाई नौरोजी का 30 जून, 1917 को निधन हुआ था। दादा भाई को इतिहास के पन्नों में और आज भी ‘Grand Old Man of India’ और ‘Father of Indian Freedom Struggle’ के नाम से जाना जाता है।
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