गत दशकों में आर्कटिक की समुद्री बर्फ (Ice) को पतला कर दिया है. सालों से जमी बर्फ (Ice) की मोटी परत बाकी की समुद्री बर्फ (Ice) के आवरण को बचाती थी. अब वो भी ज्यादातर गायब हो गई है. कैलिफोर्निया के पासाडेना में नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के समुद्री बर्फ शोधकर्ता रॉन क्वोक के नेतृत्व में 2018 में एक अध्ययन किया गया था. इसके बाद अध्ययन में पाया गया था कि 70 फीसदी समुद्री बर्फ की परत में अब मौसमी बर्फ होती है जो सर्दियों में तेजी से बढ़ती है और गर्मी के दिनों में पिघल जाती है.
16 सितंबर को आर्कटिक की समुद्री बर्फ सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है. नासा की मदद से चलने वाले नेशनल स्नो एंड आइस डेटा सेंटर और नासा के वैज्ञानिकों के मुताबिक, उपग्रह से लिए गए आंकड़ों से पता चला है कि गर्मियों की समय सीमा में समुद्री बर्फ रिकॉर्ड पर 12वीं सबसे निचले स्तर पर है.
इस साल आर्कटिक की समुद्री बर्फ की न्यूनतम सीमा घटकर 47.2 लाख वर्ग किलोमीटर रह गई है. समुद्री बर्फ की सीमा को कुल क्षेत्रफल के रूप में परिभाषित किया गया है जिसमें बर्फ की सांद्रता कम से कम 15 फीसदी होती है.
फिलहाल औसतन न्यूनतम सीमा रिकॉर्ड में भारी गिरावट देखी गई है क्योंकि उपग्रहों ने 1978 में लगातार इसे मापना शुरू किया था. पिछले 15 वर्षों अर्थात 2007 से 2021 में 43 साल के उपग्रह रिकॉर्ड में 15वां सबसे कम अंक देखा गया है.
2021 की सर्दियों में आर्कटिक की समुद्री बर्फ रिकॉर्ड के मुताबिक सबसे निचले स्तर पर थी. वैज्ञानिकों के मुताबिक 2021 की सर्दियों में आर्कटिक में समुद्री बर्फ की सीमा 21 मार्च को 2007 के समान उपग्रह रिकॉर्ड में सातवीं सबसे कम समुद्री बर्फ के स्तर तक पहुंच गई थी.
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सर्दियों में वर्ष की अधिकतम सीमा 57 लाख वर्ग मील पर पहुंच गई और 1981 से 2010 के औसत से अधिकतम नीचे 340, 000 वर्ग मील है जो कि अमेरिका के टेक्सास और फ्लोरिडा राज्य की तुलना में बड़े बर्फ के हिस्से के गायब होने के बराबर है.
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