Heaven In Hinduism: मौत(Death) जिंदगी का शाश्वत सच है, आसान शब्दों में कहें तो जिसने इस दुनिया में जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है. ये बातें हमें बचपन से बताई जाती है, फिर में हमें जीवन के प्रति मोह होता है, अपनों का अभिमान और उनसे विशेष स्नेह होता है. जबकि धर्मशास्त्र ये बताते हैं कि मौत के बाद आत्मा अकेले ही तब तक भटकती रहती है, जब तक उस व्यक्ति का श्राद्धकर्म न हो जाए.
जीवन-मरण के बंधन से कैसे मिलेगी मुक्ति
ये सारी बातें जानने के बावजूद भी इंसान मरना नहीं चाहता फिर भी मृत्यु तो होती ही है, ऐसे में हर इंसान की चाहत होती है कि मरने के बाद उसे स्वर्ग(Heaven) की प्राप्ति हो तो ऐसे में ये जानना जरूरी है कि आखिर अपने जीवन में आप कौन से कर्म करें कि मृत्यु के बाद जब यमराज के दूत आपकी आत्मा को ले जाने आएं तो वह नरक में ले जाकर यातनाएं न दें बल्कि स्वर्ग(Heaven) के सुख का अनुभव प्रदान करें.
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पहले के युगों में लोग जंगलों में जाकर तपस्या कर मोक्ष प्राप्ति की कामना करते थे, मोक्ष का मतलब ऐसी स्थिति से है जब व्यक्ति जीवन और मरण के बंधन से मुक्त हो जाए. संत तुलसीदास जी रामचरितमानस में लिखते हैं
कलियुग सम जुग आन नहीं, जौं नर कर बिस्वास
गाइ राम गुण गन बिमल, भव तर बिनहिं प्रयास
अर्थात- कलयुग अन्य युगों जैसे सतयुग, द्वापर और त्रेतायुग की तरह नहीं है. यदि व्यक्ति श्रद्धा भक्ति पर विश्वास रखे तो कलियुग से अच्छा कोई युग नहीं है. इस युग में भगवान श्रीराम का गुणगान करके ही व्यक्ति भवसागर को पार कर जाता है.
भगवान का सुमिरन कैसे करें
तुलसीदास के अलावा और भी कई साधू-संतों का यही कहना है कि भगवान का सुमिरन ही कलियुग में भवसागर को पार करने का एकमात्र रास्ता है. फिर आपके दिमाग में सवाल ये उठता होगा कि आखिर सुमिरन कैसे करें, भक्ति कैसे करें. तो आपकी पूजा में सामाग्री भले ही कम हो लेकिन भक्ति मीरा और सबरी की तरह होनी चाहिए ताकि भक्तवत्सल भगवान आपको जीवन-मरण के बंधन से मुक्ति प्रदान करें और जब मृत्यु हो तो रौ-रौ नरक(Hell) की जगह आपको स्वर्ग(Heaven) की प्राप्ति हो.
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स्वर्ग प्राप्ति के लिए अपनाएं ये मार्ग
शास्त्रों के मुताबिक जो व्यक्ति हमेशा शुद्ध आचरण करता है, जिसका मन छलरहित होता है, जो एकादशी(Ekadashi) का व्रत करता है, जो भगवान राम के गुणगान में रामचरितमानस का पाठ करता है. जिसकी जिंदगी हमेशा परोपकार के लिए होती है, जो अपने लाभ के लिए किसी को कष्ट नहीं पहुंचाता. साथ ही जो काम, क्रोध, मद और लोभ जैसे विकारों से दूर रहता है, उसे मरने के बाद अवश्य स्वर्ग(Swarg) की प्राप्ति होती है. इसलिए अपने जीवन काल में न तो लालच करें और ना ही क्रोध. ऋषि-मुनियों की तरह शांत स्वभाव में रहकर भगवद्भजन ही मोक्ष(Moksha) प्राप्ति का मार्ग है, ऐसा शास्त्र सीखाते हैं.
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