हर साल दिवाली का त्योहार पूरे देश में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. इसे हर साल कार्तिक महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है. इस भगवान श्रीराम 14 साल का वनवास काट वापस अयोध्या लौटे थे. इसी खुशी में अयोध्या वासियों ने दीये जलाए थे. तभी से दिवाली का त्योहार मनाया जाता है. ब्रह्मपुराण के अनुसार आधी रात तक रहने वाली रहने वाली अमावस्या तिथि को ही महालक्ष्मी पूजन के लिए सबसे अच्छा माना जाता है.
पूजन के लिए इस काल को माना जाता है शुभ
वहीं लक्ष्मी पूजन और दीप दान के लिए प्रदोषकाल शुभ माना जाता है. कहा जाता है कि दिवाली (Diwali Pujan) से एक दिन पहले ही पूजा स्थल को सजाना शुरु कर देना चाहिए. मां की पंसद को ध्यान में रखकर अगर की पूजा की जाए तो इसके लिए शुभत्व में बढ़ोतरी होती है. रंगों की बात करें तो मां को लाल और गुलाबी रंग पसंद होता है और फूलों में मां को कमल और गुलाब अधिक प्रिय हैं.
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इस दिशा में रखें लक्ष्मी-गणेश का मुख
दीये (Diwali Pujan) के लिए गाय के घी, मूंगफली या तिल के तेल का इस्तेमाल भी किया जा सकता है. पूजन सामग्री में गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, बिल्वपत्र, पंचामृत, ऊन का आसन, रत्न आभूषण और सिंदूर भोजपत्र भी शामिल है.
पूजा के लिए चौकी लगाते समय इस बात का ध्यान रखें कि लक्ष्मी माता और भगवान गणेश का मुख पूर्व या पश्चिम दिशा में रहे. पूजा करने वाले लोग मंदिर में मूर्तियों के सामने बैठें और कलश को लक्ष्मीजी के कलश के पास रखें.
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