हिंदु धर्म पुराणों में शक्तिपीठों का खास महत्व है। विद्वानों और पुराणों की माने तो यहां आदिशक्ति स्वंय निवास करती है। साथ ही महाकाल, त्रिलोकीनाथ भगवान शिव भी मां शक्ति के साथ यहां वास करते है। आज बात करेंगे बांग्लादेश में स्थित करतोयाघाट शक्तिपीठ की। यह शक्तिपीठ लाल मनीरहाट-संतहाट रेलवे लाइन पर, बोंगड़ा जनपद में स्टेशन से दक्षिण-पश्चिम में 32 किलोमीटर दूर भवानीपुर ग्राम में है।
लाल रंग के बलुहा पत्थर के बने इस मंदिर में चित्ताकर्षक टेराकोटा का प्रयोग हुआ है। बंगाल अति प्राचीन काल से ही शक्ति उपासना का वृहत्केंद्र रहा है। बताया जाता है कि बांग्लादेश के चट्टल शक्तिपीठ के शिव मंदिर को तेरहवें ज्योतिर्लिंग की मान्यता प्राप्त है। शक्ति संगम तंत्र में बांग्लादेश क्षेत्र को सर्वसिद्धि प्रदायक भी कहा गया है।
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बांग्लादेश के चार शक्तिपीठों- ‘करतोयाघाट’, ‘विभासपीठ’, ‘सुगंधापीठ’ तथा ‘चट्टल पीठ’ में करतोया पीठ को अति विशिष्ट कहा गया है। यह शक्तिपीठ बांग्लादेश एवं कामरूप के संगम स्थल पर करतोया नदी के तट पर 100 योजन विस्तृत शक्ति-त्रिकोण के अंतर्गत आता है तथा इसे सिद्ध क्षेत्र भी कहा गया है। मान्यता है कि यहां की सदानीरा-करतोया नदी का उद्गम भी शिव-शिवा के पाणिग्रहण के समय महाशिव के हाथ में डाले गए जल से ही हुआ है। इसलिए इसकी महत्ता शिव निर्माल्यसदृश्य है तथा इसे लाँघना भी निषिद्ध माना गया है। शास्त्रों और पुराणों की माने तो यहां माता सती के वामतल्प का निपात हुआ था। यहाँ देवी ‘अपर्णा’ रूप में तथा शिव ‘वामन भैरव’ रूप में वास करते हैं।
‘करतोयां समासाद्य त्रिरात्रो पोषितो नरः। अश्वमेधम्वाप्नोति प्रजापति कृतोविधि॥
अर्थात प्रजापति ब्रह्माजी ने यह विधान बनाया है कि जो मनुष्य करतोया में जाकर वहां तट पर स्नान कर तीन रात्रि उपवास करेगा, उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होगा। पुराणों में इस पावन शक्तिपीठ की महिमा का वर्णन मिलता है कि यहां सौ योजन क्षेत्र में मृत्यु की कामना तो मनुष्य तो क्या देवता भी करते हैं।
बता दें यहां तक माना जाता है कि जिस प्रकार काशी में श्रीमणिकर्तिका तीर्थ है। उसी प्रकार करतोयातट पर भी श्रीमणिकर्णिका मंदिर था, जहां भगवान श्रीराम ने शिव-पार्वती के दर्शन किए थे। आनन्दरामायण के यात्राकाण्ड में श्रीराम की तीर्थयात्रा के दौरान इसका वर्णन प्राप्त होता है। करतोयानदी को ‘सदानीरा’ कहा जाता है। वायुपुराण के अनुसार यह नदी ऋक्षपर्वत से निकली है और इसका जल मणिसदृश उज्जवल है। इसको ‘ब्रह्मरूपा करोदभवा’ भी कहा गया है।
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कैसे बना ये शक्तिपीठ ?
जब महादेव शिवजी की पत्नी सती अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में अपने पति का अपमान सहन नहीं कर पाई तो उसी यज्ञ में कूदकर भस्म हो गई। शिवजी को जब यह पता चला तो उन्होंने अपने गण वीरभद्र को भेजकर यज्ञ स्थल को उजाड़ दिया और राजा दक्ष का सिर काट दिया। बाद में शिवजी अपनी पत्नी सती की जली हुई लाश लेकर विलाप करते हुए सभी ओर घूमते रहे। भगवान शिव के क्रोध से तीनों लोक कांपने लगे। संसार को शिवजी के क्रोध से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को कई हिस्सों में काट दिया। जहां-जहां माता के अंग और आभूषण गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ निर्मित हो गए।
बांग्लादेश के इस स्थान पर माता की पायल गिरी, जिससे करतोयाघाट शक्तिपीठ बना। नवरात्र के दिनों में यहां की भव्यता देखनी बनती है। भक्त दूर दूर से माता के दर्शन के लिए यहां आते है और माता के दर्शन कर अपने आप को कृतार्थ करते है।
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