अंग्रेजों के जमाने में जब लड़ाई गोली-बंदूक से होती थी, कई तरह के आधुनिक हथियार आ चुके थे, उस वक्त एक आदिवासी नायक ने तीर-कमान के दम पर ही अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए. धरती आबा कहे जाने वाले बिरसा मुंडा (Birsa Munda) आज भी अपने यहां के आदिवासियों के दिलों में जिंदा है, उनके बनाए धर्म (सरनाइत) की राह पर आज भी लोग चल रहे हैं, आदिवासी समुदाय उन्हें भगवान की तरह पूजता है, या यूं कहें कि उन्हें भगवान बिरसा मुंडा के नाम से जाना जाता है.
15 नवंबर 1875 को हुआ था जन्म
1857 की क्रांति (Revolt Of 1857) जिसे हम और देश की आजादी की पहली लड़ाई के रूप में जानते हैं, वह कई कारणों से असफल रही. हालांकि उसके बाद भी आंदोलनकारियों का जुनून कम नहीं हुआ लेकिन अंग्रेजी सरकार किसी भी आंदोलन को कुचलने में कोई भी कसर नहीं छोड़ना चाहती थी. इस असफल क्रांति के 18 साल बाद 15 नवंबर 1875 को बिहार (तत्कालीन झारखंड) के खूंटी जिले के उलहातु गांव के एक गरीब किसान के घर बिरसा मुंडा (Birsa Munda) का जन्म हुआ, जिन्होंने आजादी की लड़ाई को एक नई दिशा दी. शुरुआती पढ़ाई पूरी करने के बाद ही बिरसा मुंडा का ध्यान अंग्रेजों की बर्बरता और अपने समाज के लोगों की दयनीय हालत की ओर गया.
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19 साल की उम्र में ही किया आंदोलन
आलम ये हुआ कि 19 साल की उम्र में ही बिरसा मुंडा (Birsa Munda) ने सभी मुंडाओं को आंदोलन करने के लिए एक नेतृत्व प्रदान किया. 1 अक्टूबर 1894 को लगान माफी की मांग को लेकर आंदोलन करने वाले बिरसा मुंडा को 1895 में गिरफ्तार कर लिया गया. छोटानागपुर पठार के क्षेत्र में अकाल और भीषण महामारी के दौर में बिरसा मुंडा ने लोगों की इतनी सेवा की कि लोग उन्हें एक महापुरुष मानते थे, बाद में उन्हें धरती आबा और भगवान का दर्जा मिला.
तीर-कमान के दम पर छुड़ा दिए अंग्रेजों के छक्के
अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में उस वक्त आदिवासी समुदाय के लोग अपने पारंपरिक अस्त्र-शस्त्रों का इस्तेमाल करते थे, जिसमें तीर-कमान ही उनका मुख्य शस्त्र था. इसी तीर-धनुष की बदौलत गुरिल्ला युद्ध (Guerrilla Warfare) के जरिए आदिवासियों ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए. अगस्त 1897 में तीर-कमान से लैस बिरसा मुंडा और करीब 400 सिपाहियों ने खूंटी थाने पर धावा बोल दिया.
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25 साल की उम्र में ली आखिरी सांस
साल 1898 में तांगा नदी के किनारे भी आदिवासियों और अंग्रेजों (British) के बीच युद्ध हुआ, जिसमें आदिवासी लड़ाकों ने अंग्रेजी सेना के दांत खट्टे कर दिए. हालांकि बाद में अंग्रेजों ने कई आदिवासियों को गिरफ्तार किया. 3 फरवरी 1900 को अंग्रेजी सेना ने बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर लिया, कहते हैं कि करीब चार महीने जेल में रहने के दौरान हैजा की वजह से बिरसा मुंडा (Birsa Munda Death) का निधन हो गया. रांची जेल में उन्होंने आखिरी सांस ली.
15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस का ऐलान
हाल ही में केन्द्र सरकार की ओर से 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस ( Janjatiya Gaurav Divas) मनाने का ऐलान किया गया. अगर आपको नहीं पता तो ये जान लीजिए कि 15 नवंबर की तारीख का जनजातीयों में खास महत्व है. इस दिन भगवान बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था. यही वजह रही कि सरकार ने बिरसा मुंडा की जयंती को अब जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया है. अब बिरसा मुंडा की जयंती झारखंड समेत कुछ विशेष राज्यों की बजाय देशभर में मनाई जाएगी.
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दस राज्यों में खुलेंगे संग्रहालय
15 नवंबर को प्रधानमंत्री ने झारखंड के रांची में भगवान बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान सह स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय का उद्घाटन किया. इस अवसर पर पीएम मोदी ने कहा कि भारत की जनजातीय परंपराओं और इसकी शौर्य गाथाओं को और अधिक सार्थक और भव्य पहचान दिया जाएगा. अलग-अलग राज्यों में दस जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों के संग्रहालय खोले जाएंगे.
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