हिंदू(Hindu) धर्म का सबसे उत्तम ग्रंथ, दुनिया का पहला ग्रंथ जिसकी जयंती(Geeta Jayanti 2021) मनाई जाती है और एक ऐसा ग्रंथ जिसका उपदेश आपके जीवन को सफल बनात है, धर्म की राह पर चलना सीखाता है. आज सबसे पौराणिक ग्रंथों में से एक धर्मग्रंथ गीता की जयंती है. इस जयंती पर हरियाणा(Haryana) सरकार कार्यक्रम का आयोजन करती है तो वहीं घर-घर में श्रीकृष्ण और गीता की पूजा होती है, लोग गीता पाठ करते हैं. ऐसे में जानते हैं कि आखिर गीता जयंती(Geeta Jayanti 2021) कब और क्यों मनाते हैं.
आप जानते हैं कि धर्मग्रंथ गीता(Srimad Bhagwad Gita) ज्ञान का अद्भूत संग्रह है, जिसके 18 अध्याय में वर्णित 700 श्लोक जिंदगी की शिक्षा देते हैं. जिसके 18 अध्याय कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग सीखाते हैं. द्वापर युग में मार्गशीर्ष(अगहन) महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि(Ekadashi) को भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था. इस दिन श्रद्धालु मोक्षदा एकादशी का भी व्रत करते हैं तो वहीं गीता जयंती भी मनाई जाती है.
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श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था उपदेश
महाभारत(Mahabharat) की लड़ाई के शुरुआत में जब पांडव और कौरव एक दूसरे के आमने-सामने हुए तो अर्जुन(Arjun) ने श्रीकृष्ण से कहा कि प्रभु हमारा रथ वहां ले चलिए जहां से मैं युद्ध में कौरवों की ओर से शामिल होने आए सभी महारथियों को देख सकूं. लेकिन जैसे ही श्रीकृष्ण(Shri Krishna) ने अर्जुन का रथ सगे-संबंधियों के बीच खड़ा किया, अर्जुन ने कहा-
गाण्डीवं संस्रते हस्तात्वक्चैव परिदह्माते
न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मन:
अर्थात- हाथ से मेरा धनुष गाण्डीव गिर रहा है, त्वचा चल रही है और मेरा मन भ्रमित हो रहा है. युद्ध करना तो दूर मैं खड़ा होने में भी समर्थ नहीं हूं. आगे अर्जुन ने ये भी कहा कि हे मधुसूदन में तीनों लोकों के राज्य के लिए भी इन्हें नहीं मारना चाहता, फिर पृथ्वी की तो क्या ही बात है. अर्जुन की बातों को सुनकर श्रीकृष्ण ने कहा-
जातस्त हि ध्रुवो, मृत्युध्रुवं जन्म मृत्युस्य च
तस्मादपरिहाहार्येर्थे न त्वं शोचितुमहर्सि
अर्थात- हे पार्थ- जन्म लेने वाली की मृत्यु निश्चित है और मरने वाले जन्म का निश्चित है. इसलिए ऐसे विषय पर तुम शोक करने योग्य नहीं हो, तुम्हें इसे लेकर शोक नहीं करना चाहिए. आगे श्रीकृष्ण ने कहा कि अगर तुम युद्ध में मारे गए तो स्वर्ग को प्राप्त करोगे और अगर जीत गए तो पृथ्वी का राज भोगोगे, इसलिए हे पार्थ व्यर्थ की चिंता छोड़ गाण्डीव उठाओ और युद्ध करो.
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श्रीकृष्ण ने ये भी कहा कि आत्मा अजर-अमर है. जब-जब धर्म का नाश होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती है तो तब-तब मैं अपने भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने और धर्म की फिर से स्थापना के लिए अवतार लेता हूं.
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