सड़ा हुआ मांस उठाना कितना गँदा काम है. पुरे विश्व में यह काम लाखों लोग करते हैं. कोई कहे के सड़ा हुआ मांस खाना है तब क्या होगा ? कोई यह सडा हुआ मांस खाएगा ? लेकिन कुदरत का यह पक्षी यह काम करता है. और यह पक्षी का नाम है गिद्ध. “कुदरती सफाई कर्मी गिद्ध” आकाश की बुलंदियों को छुनेवाले गिद्ध की पुरे विश्व में 23 प्रजाति पाई जाती है. और भारत में 9 प्रजाति के गिद्ध पाये जाते हैं. जिसके नाम हैं.
1.White rumped vulture
2.Slender billed vulture
3.Long billed vulture
4.Red headed vulture
5.Egyptian vulture
6.Himalayan vulture
7.Cinereous vulture
8.Bearded vulture
9.Indian griffon
यह प्रजातियों के गिद्ध भारत में पाये जाते है.भारतीय और विश्व की संस्कृतियों में गिद्ध से एक अनोखा नाता है. भारतीय संस्कृति में गिद्ध की बात करें तो.सबसे पहले रामायण के गिद्धराज जटायु की बात सामने आती है. इसी तरह भारतीय संस्कृति में गिद्ध को अनेक कथा एवं दंतकथा से जोड़ा गया है. विश्व के दूसरे देशों में गिद्ध की बात करें तो. पूर्व कालीन मिस्त्र में जिसे आज इजिप्त के नाम से जाना जाता है. यहां की महारानी क्लियोपेट्रा भी गिद्ध के सिर से सजा हुआ मुकुट पहनती थी. जो ज्ञान का प्रतीक है. रोमन साम्राज्य में गिद्ध का चिन्ह मिलिट्री की शक्ति दिखाने के लिए उपयोग में लिया जाता था.
ऐसे ही आदिकाल से गिद्ध पुरे विश्व की संस्कृति में और अलग-अलग सभ्यताओं में देखे जा सकते थे. तो ऐसे लोक संस्कृति में देखे जाने वाले गिद्धराज को क्या हुआ. जिसकी भारत में 99 प्रतिशत जितनी आबादी तुरंत नष्ट हो गई. कहते है ना इंसान से ज्यादा खतरनाक इस दुनिया में कुछ नहीं, और इंसानो की बनाई हुए चीजों से भयंकर कुछ भी नहीं. और इंसानों ने एक ऐसी ही भयंकर चीज बनाई थी. जिसने 99 प्रतिशत से ज्यादा गिद्धों की आबादी को मौत की नींद सुला दिया. और इस चीज का नाम है डायक्लोफेनेक सोडियम.
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यह दवाई मनुष्य और पशुओं को दर्द निवारक के तौर पर दी जाती थी. साथ ही इस दवाई का उपयोग पालतू पशुओं में दूध की मात्रा बढ़ाने में होती थी. और जब कोई भी पालतू पशु मरे तब बड़े ही सम्मान के साथ मृत पशु को गिद्धों के हवाले कर दिया जाता था. किंतु गिद्ध और ज्यादातर लोग यह नहीं जानते थे कि गिद्धों को वह जहर खिला रहे हैं. गिद्धों की लगातार मौतें देखकर वैज्ञानिकों ने काफी खोज की, तब कहीं जाकर 2003 के आसपास पता लगा की गिद्धों की मौत डायक्लोफेनेक सोडियम से हो रही है.
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सरकार ने तुरंत इस दवाई पर रोक लगा दी थी. जिससे बाकी बचे गिद्धों को बचाया जा सके. जब तक पता चला तब तक बहुत देर हो गई थी. भारत अपने 99 प्रतिशत गिद्ध खो चुका था. भारत में अस्सी के दशक में गिद्धों की आबादी 4 करोड से भी ज्यादा थी. 2009 आते आते गिद्धों की आबादी कुछ हजार में रह गई. जो लगातार कम हो रही है. डायक्लोफेनेक की असर पशु और इंसान के टिश्यू में रह जाती है. जिससे मवेशी की मौत होने के बाद उसे नदी के किनारे डाल दिया जाता है. जिसे गिद्ध खाते है. इसका रसायन वल्चर के शरीर में पहुंचता है. डाइक्लोफिनेक सोडियम पक्षियों के लिए टॉक्सिन का काम करता है. इससे गिद्ध के लिवर और किडनी पर असर डालता है. जिसके बाद इनकी मौत हो जाती है.
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भारत में रहनेवाले हर एक गिद्ध एवरग्रीन जंगल से लेकर ड्राय-डिसाइड्यूअस और सेमी एरिड टाइप के हैबिटेट में रहना पसंद करते है. गिद्ध बड़ी बड़ी कॉलोनी बनाकर रहते है. और सब साथ में रुस्टिंग करते है. मृत पशुओं की डंपिंग साइट, कत्लखाना के आसपास और गार्बेज डंपिंग साइट के आसपास गिद्ध दिख सकते थे. ऊँचे पेड़ और पहाड़ों की क्लिफ पर गिद्ध नेस्ट बनाते है. नर गिद्धों में कोर्टशिप फाइट भी होती है. मेटिग होने के बाद गिद्ध एक अंडा देते है. जो 45 दिनों के बाद ऐन्क्युबेट होता है. बच्चा अंडे में से निकलने के बाद गिद्ध माता-पिता बच्चे की देखभाल करते है. सभी गिद्ध गंजे होते है. क्यूकी मृत पशुओं के अंदर मुंह डालकर मांस निकालना होता है. जिससे दुनिया का मॉस्ट ऑफ गिद्ध के सर पर कोई फिधर नहीं होते.
गिद्धों को किससे खतरा
गिद्धों को पहला खतरा है डाइक्लोफिनेक सोडियम से. दूसरा खतरा के हैबिटेट लॉस. शहरीकरण बढ़ने से गिद्धों के आवास कम हो रहे है. और आवास कम होने के कारण गिद्ध भी कम हो रहे है. तीसरा कारण है अन्य जीव. गिद्धों को फेरल डोग्स से सबसे ज्यादा खतरा होता है. यह कुत्ते मृत जीव को खाने आते है तब कभी कभी गिद्धों पर भी हमले करते है. तो साथ ही गिद्धों को यह कुत्ते सड़ा हुआ मांस खाने नहीं देते. जिससे गिद्धों की खुराक में कटौती आ रही है. चौथा ख़तरा है इन्फेक्शन. काफी प्रकार के संक्रामण White rumped vulture और Long billed vulture में देखे गये है. जिससे यह प्रजाति पूरी नष्ट हो सकती है. पांचमा ख़तरा है. पेस्टिसाइड और इन्टेक्टिसाईट. यह केमिकल्स पानी में मिलकर दूषित कर सकते है. जिसे पीने के बाद गिद्ध पर विपरीत असर हो सकती है. गिद्ध का यह भी फेक्ट है की गिद्ध को पानी बहुत पसंद है. और यह दूषित पानी पीने से गिद्ध मर सकते है.
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गिद्ध इतने भयंकर सड़े हुए मांस को भी खाकर बीमार क्यों नहीं पड़ते सवाल तो आपके जहन में होता होगा. किंतु इसका जवाब है गिद्धों की गज़ब की इम्यूनिटी. गिद्धों के पेट में हाइड्रोक्लोरिक एसिड बनता है जो धातुओं तक को पिघला सकता है. कुछ गिद्धों के पेट में 0-1 के बीच pH होता है. जो सब कुछ पिघला सकता है. सड़ रही लाशों में बहुत प्रकार के पेरासाईट एवं बैक्टीरिया हो सकते है. लेकिन गिद्ध के पेट का यह एसिड यह सभी बैक्टीरिया को नष्ट कर देता है.
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सालमोनेला,कोलेरा, एन्थरेक्स, बोटुलिझम और रेबिझ जैसे जीवाणु को हाइड्रोक्लोरिक एसिड नष्ट कर देता है. इसके साथ ही गिद्ध के पास एक सिक्रेट वेपन होता है. गिद्ध पूप अपने पैर पर करते है. गिद्ध मृत पशु पर चढ़ के खाते है जिससे पैरों पर काफी प्रकार के जीवाणु आ जाते है. तो इससे निपटने के लिए गिद्ध खुद के पैरो पर अपना मल मूत्र त्यागते है. जिससे पैरों पर सेनेटाइज हो जाता है. साथ में गर्मी के दिनों में पैर को ठंडे रखने में मदद मिलती है. तो साथ में यह पूप जहां पर भी गिरती है वहां आसपास भयानक जीवाणु को नष्ट कर देती है. इस प्रकार के बिहेवियर को युरो हाईड्रोसिस कहते है. खास करके यह बिहेवियर वल्चर्स और स्टोर्क में देखने को मिलता है.
गिद्धों को बचाना ने की क्या जरूरत है.
गिद्ध नहीं होंगे तो इंसान के पास कोरोना से भी भयंकर बीमारियां आ सकती है. मान लीजिए गिद्ध खत्म हो गये. तब क्या होगा ? कुत्ते और चूहे यह सड़ा हुए मृत पशु का मांस खाने लगेंगे. जिससे यह मृत पशु को बहुत धीरे धीरे डिकंपोज होगा. जिसमें बहुत वक्त लगता है. और काफी जीवाणु हो जाते है. जिससे गंभीर बीमारियां फेलने का खतरा बढ जाता है. जब कुत्ते और चूहे यह सड़ा हुआ मांस खाते है तब काफी प्रकार के जीवाणु कुत्तों और चूहे में रह जाते है. जिससे बहुत सारी बीमारियां कुत्तों और चूहों में आ जाती है. जो सीधी इंसानों में आ सकती है. और इस तरह भयंकर महामारी फैल सकती है. कुदरत के इस सफाई कर्मी की पूरी दुनिया एवं हर एक जीव के लिए जरूरी है. गिद्ध बचाने के इस मुहिम को सहयोग दे. ओटीटी डोट इंडिया टीवी के इस अभियान में सहयोग करे. गिद्ध को बचाये. और डायक्लोफेनेक सोडियम जैसी जहरीली दवाइयों का उपयोग न करे.
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