जो चारों युगों में प्रसिद्ध है… जिन्होंने अनेकों रूप में धरती पर अवतार लिया… मनुष्य की काया में जहां भगवान ने जन्म लिया ऐसी नगरी, जिसका नाम कायावारोहण है। शिव संप्रदाय का प्रसार प्रचार करने वाले, भारत के अड़सठ तीर्थ में से एक तीर्थ कायावारोहण के भगवान लकुलीशजी की जय जयकार।
भगवान लकुलीश का सुप्रसिद्ध मंदिर वडोदरा के महातीर्थ कायावारोहण में आया हुआ है. कायावारोहण में भगवान लकुलीश के दिव्य स्वरूप के दर्शन होते हैं. लकुलीश के दर्शनमात्र से ही मनुष्य पाप मुक्त हो जाता है. भगवान लकुलीश का मुख्य मंदिर कायावारोहण गांव में था. अब जो आप मंदिर देख रहे हैं वो देवालय कृपाल्वानंदजी स्वामी और रमणभाई के सहयोग से बना है. मंदिर परिसर की कलाकृति वाले प्रवेशद्वार और आरस के पत्थर से बना हुआ है मंदिर की भव्यता को देखकर मन प्रफुल्लित हो जाता है. श्वेत मंदिर में ब्रह्मेश्वर ज्योतिर्लिंग विराजमान है, भगवान लकुलीश की पवित्र मृखारविंद वाली शिवलिंग देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है.
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लकुलीश भगवान के मुखवाली शिवलिंग का इतिहास भी रोचक है. प्राचीनकाल में विश्वामित्र ऋषि ने यहां तपश्चर्या की थी. इसी समय ब्रह्मेश्वर शिवलिंग की स्थापना हुई. द्वापरयुग के अंत और कलयुग की शुरुआत में भगवान लकुलीश मानवकाया में अवतरित हुए थे. अवतार का कार्य पूर्ण करके प्रभु लकुलीश कायावारोहण तीर्थ के ब्रह्मेश्वर ज्योतिर्लिंग में विलिन हुए. भगवान लकुलीश लिंग के अग्रभाग में मूर्ति के स्वरूप से प्रतिष्ठित हुए थे. एक काया से दूसरी काया में अवतरीत होने के कारण ही इस महातीर्थ को कायावारोहण कहा जाता है. आज इसी नाम से यह तीर्थ सुप्रसिद्ध है.
प्राचीन तीर्थ स्थान के साथ 4500 साल का समुद्ध इतिहास जुड़ा है. पौराणिक ग्रंथों में कायावारोहण को शैवतीर्थ और शक्तिपीठ कहा गया है. माना जाता है कि देवो के देव महादेव ने इस तीर्थक्षेत्र में मानव स्वरूप में प्रकट होकर तीर्थक्षेत्र का महत्व बढ़ा दिया था. प्रसिद्ध महाक्षेत्र में भृगु, अत्रि ऋषि, विश्वामित्र ऋषि जैसे ऋषिओं ने तप किया था.
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भगवान लकुलीश के गुंबज की कलाकृति और मंदिर की रोशनी सभी को आकर्षित करती है. विराट शिवलिंग पर जलाभिषेक करते वक्त भक्त शांति का अनुभव करते हैं.
भक्त लकुलीश की चरण में आकर आनंदित भक्तिमय हो जाता है. शिव संप्रदाय का ज्ञान प्राप्त करने के लिए एक जगह बैठ जाते है. मंदिर में योगासन की कलाकृतियाँ दिखाई देती है क्योंकि योग विद्धा का भगवान लकुलीश के शिष्यों ने प्रचार किया था. मंदिर में अलग-अलग देवी-देवताओं के दर्शन होते है.
योग का सविशेष महत्व होने के कारण योग सिखाने का कार्य होता है. प्रकृति की गौद में हवन और यज्ञ के लिए कुंड बनाया गया है. दर्शनार्थियों के लिए यहां पर विश्रामगृह बनाया गया है. यात्रियों को योग का ज्ञान मिलता रहे इस प्रकार से योगासन का वर्णन करते दीवारों पर चित्र बनाए गए हैं।
कायावरोहण तीर्थ को दूसरा काशी माना जाता है, भगवान लकुलीश पर भक्तों की श्रद्धा इतनी है की पूरे भारत से हजारों भक्त यहां दर्शन के लिए आते है.
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