आजादी के आंदोलन (Freedom Movement) में लाल-बाल और पाल की जोड़ी या तिकड़ी को भला कौन नहीं जानता होगा. अगर इतिहास के पन्ने पलटे होंगे तो आपने गरम दल के नेताओं में इन तीनों का नाम जरूर सुना होगा. लाल यानि लाला लाजपत राय, बाल यानि बाल गंगाधर तिलक और पाल यानि विपिन चंद्र पाल. हम आज बात करेंगे लाल यानि लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) की. जिनकी आजादी के आंदोलन में इतनी अहम भूमिका रही कि उन पर पड़ी पड़ी लाठी अंग्रेजों के ताबूत की कील साबित हुई.
पंजाब के मोगा में हुआ था जन्म
साल 1927 का वो दौर जब भारत की आजादी को लेकर आंदोलन चरम पर था तो भारत शासन अधिनियम 1919 में सुधार को लेकर एक विधिक आयोग का गठन किया, जिसे साइमन कमीशन (Simon Commission) कहा गया. असहयोग आंदोलन के बाद के इस दौर में कांग्रेस का नरम और गरम दल अलग-अलग आंदोलन चल रहा था, लक्ष्य एक ही था लेकिन गांधीजी जहां सत्य और अहिंसा के दम पर आजादी की बात कर रहे थे तो वहीं गरम दल के लिए अहिंसा की शर्त नहीं थी. 28 जनवरी 1865 को पंजाब के मोगा में जन्मे लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) ने शुरुआती दिनों में वकालत की लेकिन बाद में स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े.
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साइमन कमीशन के खिलाफ विरोध का किया था नेतृत्व
चाहे आर्य समाज के प्रचार-प्रसार की बात हो या फिर लोगों की सेवा की बात लाला लाजपत राय हमेशा आगे रहे. साल 1927 में गठित साइमन कमीशन जब 3 फरवरी 1928 को मुंबई पहुंचा तो जोरदार विरोध हुआ. 30 अक्टूबर 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन के खिलाफ विशाल प्रदर्शन किया गया, जिसका नेतृत्व लाला लाजपत राय ने किया. यही वो विशाल प्रदर्शन था जिसमें अंग्रेजों ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया.
लाला लाजपत राय की मौत का लिया बदला
साइमन कमीशन वापस जाओ के नारे लगा रहे कई प्रदर्शनकारी लाठीचार्ज में घायल हो गए, आंदोलन का नेतृत्व कर रहे लाला लाजपत राय इस लाठीचार्ज में बुरी तरह घायल हुए, लेकिन तनिक भी विचलति नहीं हुए. बल्कि उन्होंने कहा कि मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत का कील बनेगी. हालांकि उनकी चोट इतनी गहरी थी कि 17 नवंबर 1928 को उन्होंने दुनिया को अलविदा (Lala Lajpat Rai Death) कह दिया, लेकिन इसी के साथ अंग्रेजों से बदला लेने का प्लान भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव और राजगुरु जैसे क्रांतिकारियों ने बनाया.
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लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए 17 दिसंबर 1928 की तारीख तय की गई, लेकिन उस दिन क्रूर सुपरिटेंडेंट जेम्स ए स्कॉट जिसने लाठीचार्ज का आदेश दिया था उसकी जगह असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस सांडर्स क्रांतिकारियों का निशाना बन गया.
सांडर्स हत्याकांड में हुई थी फांसी
ये वही सांडर्स हत्याकांड (Saunders Murders Case) था जिसमें भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को दोषी मानकर फांसी की सजा सुनाई गई. यानि असेंबली में बम फेंकने की वजह से नहीं बल्कि सांडर्स हत्याकांड जिसे लाहौर षडयंत्र के नाम से भी जानते हैं, उसकी वजह से इन्हें फांसी की सजा सुनाई गई. अंग्रेज इन क्रांतिकारियों से इतने डर गए थे कि 24 मार्च 1931 की बजाय 23 मार्च 1931 को ही इन्हें फांसी दे दी गई. कुछ इस तरह क्रांतिकारियों ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया और इनकी शहादत की बदौलत ही हम आजाद हैं.
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