मां शक्ति की पूजा हमारे देश में कई जगहों पर की जाती है। आज हम मां शक्ति के एक ऐसे ही रूप के दर्शन और उनकी कथा जानेंगे जिससे सुनना भी उनकी कृपा से कम नहीं है। हम बात कर रहे है मां वैष्णो देवी की। मां वैष्णो देवी का ये शक्तिस्थल जम्मू कश्मीर क्षेत्र में कटरा के पास मौजूद है। यहां स्थित त्रिकुटा की पहाड़ी पर लगभग 5 हजार 2 सौ फीट की उंचाई पर मां शक्ति का ये पावन धाम है।
माता रानी का ये मंदिर देश में तिरूमला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद दूसरा सबसे ज्यादा देखा जानेवाला धार्मिक स्थल है। यहां त्रिकुटा देवी मां रामायण काल से ही मां शक्ति के तीनों रूप के साथ निवास करती है। त्रिकुटा देवी के नाम से ही यहां इस पर्वत का नाम त्रिकुट पर्वत पड़ा। यहां त्रिकुटा की पहाड़ियों पर स्थित एक गुफा में माता वैष्णो देवी की स्वयंभू तीन मूर्तियां हैं। देवी काली (दाएं), सरस्वती (बाएं) और लक्ष्मी (मध्य), पिण्डी के रूप में गुफा में विराजित हैं। इन तीनों पिण्डियों के सम्मिलित रूप को वैष्णो देवी माता कहा जाता है। इस स्थान को माता का भवन कहा जाता है। पवित्र गुफा की लंबाई 98 फीट है, इस गुफा में एक बड़ा चबूतरा बना हुआ है। इस चबूतरे पर माता का आसन है।
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मंदिर के संबंध में कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं। कहते हैं कि एक बार त्रिकुटा की पहाड़ी पर एक सुंदर कन्या को देखकर भैरवनाथ उससे पकड़ने के लिए दौड़े, भैरवनाथ को अपनी तरफ आता देख वह कन्या वायु रूप में बदलकर त्रिकूटा पर्वत की ओर उड़ चलीं। तब भैरवनाथ भी उनके पीछे भागे। माना जाता है कि तभी मां की रक्षा के लिए वहां पवनपुत्र हनुमान पहुंच गए। दरअसल एक समय हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर बाण चलाकर एक जलधारा निकाली और उस जल में अपने केश धोए। आज इस स्थान को बाणगंगा के नाम से जाना जाता है फिर वहीं एकगुफा में प्रवेश कर माता ने नौ माह तक तपस्या की, और हनुमानजी ने पहरा दिया था।
जिस समय भैरवनाथ वहां पहुंचे, उस दौरान एक साधु ने भैरवनाथ से कहा कि तू जिसे एक कन्या समझ रहा है, वह आदिशक्ति जगदम्बा है, इसलिए उस महाशक्ति का पीछा छोड़ दे, लेकिन भैरवनाथ ने साधु की बात नहीं मानी। माता गुफा की दूसरी ओर से मार्ग बनाकर बाहर निकल गईं। यह गुफा आज भी अर्द्धकुमारी या आदिकुमारी या गर्भजून के नाम से प्रसिद्ध है। अर्द्धकुमारी के पहले माता की चरण पादुका भी है। यह वह स्थान है, जहां माता ने भागते-भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था।
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अंत में गुफा से बाहर निकल कर कन्या ने देवी का रूप धारण किया और भैरवनाथ को वापस जाने का कह कर फिर से गुफा में चली गईं, लेकिन भैरवनाथ नहीं माना और गुफा में प्रवेश करने लगा। यह देखकर माता की गुफा पर पहरा दे रहे हनुमानजी ने उसे युद्ध के लिए ललकारा और दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध का कोई अंत ना होता देखकर माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का वध कर दिया। कहा जाता है कि अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने मां से क्षमादान की भीख मांगी। माता वैष्णो देवी जानती थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी, तब उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि उसे वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएंगे, जब तक कोई भक्त, मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा। तब से माना जाता है कि मां वैष्णों देवी की यात्रा तब तक पूरी नही मानी जाती जब तक कि भैरवनाथ के दर्शन ना हो।
हर साल नवरात्री में लाखों भक्त यहां आते है। यहां की सबसे खास बात ये है कि कठिन चढ़ाई और थकादेनावाला सफर होने के बावजूद भी भक्त हर साल मां के दर्शन के लिए यहां पहुंचते है। आदिशक्ति भी अपने भक्तों की इस तपस्या को खाली नहीं जाने देती। यहां आनेवाला हर भक्त मां के दरबार से कुछ ना कुछ लेकर ही जाता है।
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