भारत में कोरोना वायरस महामारी को आए लगभग दो साल हो गए हैं. कोरोना के खिलाफ लड़ाई में कोरोना वैक्सीन ने अहम भूमिका निभाई है. जब ज्यादातर लोग घर पर रहे, जब नौकरियां बंद थीं, तो ऐसे लोग भी थे जो गरीबों की मदद और खाना खिलाने के लिए आगे आए. ज्यादातर मामलों में कोरोना से जूझ रहें दर्दी अपने परिवार के दुसरे लोगों से तक नहीं मिल पाते थे. अब एक रिपोर्ट सामने आई है कि दुनिया पहले ही कोरोना वायरस से जूझ रही है तब नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने एक रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट में NCRB ने बताया कि साल 2020 में भारत में हर दिन 31 बच्चों ने आत्महत्या की है.
यह रिपोर्ट चौंकाने वाली है. एक्सपर्ट्स ने इसके लिए कोरोना महामारी को एक बड़ी वजह ठहराया है. बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर कोरोना का गहरा असर पड़ा. एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि हर घंटे 1 बच्चे ने आत्महत्या की, जिसमें 5392 लड़के और 6004 लड़कियां थीं.
NCRB today releases annual Report ACCIDENTAL DEATHS AND SUICIDES IN INDIA, 2020. Available on https://t.co/37opnVapZM. NCRB appreciates States and UTs for providing data timely.@PIBHomeAffairs
, .@PTI_News pic.twitter.com/oz31gWBy3M— NCRB (@NCRBHQ) October 28, 2021
यह कहा जा सकता है कि पिछले साल 31 बच्चों ने हर दिन और हर 1 घंटे में 1 ने आत्महत्या की थी. NCRB के आंकड़ों के अनुसार 2020 में 11,396 बच्चों की आत्महत्या से मृत्यु हुई, 2019 में 9613 बच्चों ने आत्महत्या की जबकि 2018 में 9413 बच्चों ने आत्महत्या की. सांख्यिकीय रूप से, 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में आत्महत्या का मुख्य कारण पारिवारिक समस्याएं थीं.
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक 18 साल से कम उम्र के बच्चों की आत्महत्या का मुख्य कारण पारिवारिक समस्याएं, लव अफेयर और बीमारी है. जिसकी संख्या 4006 से 1337 और बीमारी की वजह से 1327 है. कुछ बच्चों के आत्महत्या करने के पीछे की वजह वैचारिक कारण, बेरोजगारी, नपुंसकता और नशीली दवाओं का उपयोग जैसे अन्य कारण हैं.
India recorded 1,53,052 suicides in 2020, up from 1,39,123 in 2019; 7 per cent (10,677) of total suicides last year were by people involved in farming sector: National Crime Records Bureau report
— Press Trust of India (@PTI_News) October 29, 2021
जानकारों के मुताबिक महामारी के चलते स्कूल की गतिविधियां बंद होने से बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास बुरी तरह प्रभावित हुआ है.
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भावनात्मक कल्याण और सामाजिक-मानसिक विकास
सेव द चिल्ड्रन के डिप्टी डायरेक्टर फोर चाइल्ड प्रोटेक्शन के प्रभाव कुमार ने कहा कि “हम एक समाज के रूप में नेशनल ह्यूमन केपिटल के निर्माण के लिए शिक्षा और शारीरिक स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करते हैं”. जिसमें वे भावनात्मक कल्याण और सामाजिक-मानसिक विकास से संबंधित समर्थन पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सके. बाल आत्महत्या की बढ़ती घटनाएं समग्र रूप से हमारे समाज की असफलता को दर्शाती हैं.
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प्रभात कुमार कहते हैं, ”माता-पिता और परिवार, पड़ोसियों के साथ-साथ सरकार भी सामूहिक जिम्मेदारी होती है. हम एक ऐसा इकोसिस्टम बनाना चाहते हैं जो बच्चों की क्षमता का एहसास करे और एक उज्जवल भविष्य बनाने के सपनों को पूरा करने में सक्षम हो.
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