हर महीने की एकादशी(Ekadashi) तिथि जैसे भगवान विष्णु को समर्पित है, वैसे ही हर महीने की दोनों त्रयोदशी तिथियां भगवान शिव को समर्पित हैं. कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि(Tryodashi Tithi) को भगवान शिव की पूजा की जाती है. इसे प्रदोष व्रत(Pradosh Vrat) के नाम से भी जाना जाता है, जिसकी अलग वजह है. फिलहाल हम ये जानते हैं कि इस व्रत की महिमा, पूजा विधि(Puja Vidhi) और कथा क्या है.
देवताओं ने की थी महादेव की स्तुति
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक समुद्र मंथन के दौरान जब समुद्र से विष निकला तो भगवान भोले(Bhole) ने उसे पी लिया, इसी वजह से उनका कंठ नीला हो गया और उन्हें नीलकंठ नाम से भी जाना जाने लगा. तब देवताओं ने भगवान भोले की स्तुति की, जिससे महादेव अत्यंत प्रसन्न हुए.
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इस वजह से कहा जाता है प्रदोष व्रत
उस दिन त्रयोदशी तिथि और प्रदोष काल(Pradosh Kaal) था, इसी वजह से इसे प्रदोष व्रत कहा जाने लगे. हालांकि प्रदोष व्रत की दूसरी कहानी ये भी है कि चंद्रमा को क्षय रोग की वजह से काफी कष्ट झेलना पड़ा, ऐसे में भगवान शिव ने उनके रोगों का निवारण किया और उन्हें नई जिंदगी दी. जिसके बाद से इसे प्रदोष व्रत कहा जाने लगा.
इस दिन भगवान भोले की करें पूजा
इस व्रत को करने वाले श्रद्धालुओं को सुबह उठकर स्नानादि से निवृत हो भगवान शिव(Lord Shiva) की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करनी चाहिए. कहते हैं त्रयोदशी तिथि जिस दिन को होती है, उस हिसाब से उसका नाम रखा जाता है. इस बार मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि गुरुवार यानि 16 दिसंबर को है. यानि कि प्रदोष व्रत 16 दिसंबर को रखा जाएगा और 17 दिसंबर को पारण कर सकेंगे.
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व्रत से प्रसन्न होते हैं भगवान भोले
प्रदोष व्रत(Pradosh Vrat) रखने से भगवान भोले प्रसन्न होते हैं. देवाधिदेव महादेव की कृपा भक्तों के ऊपर बनी रहती है. वहीं चंद्र ठीक होने से मानसिक समस्याएं भी खत्म होती हैं. इस व्रत के प्रभाव से धन-धान्य, सुख और बेहतर स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है.
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