रावण(Ravana) एक ऐसा बलशाली, पराक्रमी और विद्वान योद्धा था जिससे देवता भी डरते थे. यहां तक रावण(Ravana) के डर से हमेशा इंद्रदेव को गद्दी जाने की चिंता सताती थी. यूं तो रामचरितमानस(Ramcharitmanas) और रामायण में रावण वध की कहानी विस्तार से बताई गई है लेकिन क्या आप जानते हैं कि रावण का जन्म कैसे हुआ, अगर वह ऋषि पुत्र था तो वह राक्षस कैसे बन गया. अगर नहीं जानते तो आपको दस सिर वाले रावण के जन्म से जुड़ी कहानी(Ravana Birth Story) को पढ़ना होगा.
ये तो आप भी जानते होंगे कि रावण के दादा का नाम ऋषि पुलस्त्य और पिता का नाम विश्रवा(Vishrava) था जो एक महान ऋषि थे लेकिन रावण की माता कैकसी(Kaikasi) एक असुर था. कहते हैं कि माली, सुमाली और मलेवन नाम के अत्यंत क्रूर राक्षसों ने इतना आतंक मचाया कि देवता भी परेशान हो गए, भगवान विष्णु के पास सभी देवता विनती करने जा पहुंचे. जिसके बाद देवताओं से युद्ध करने पहुंचे माली, सुमाली और मलेवन को भगवान विष्णु(Lord Vishnu) ने मार भगाया.
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हार देखकर भाग सुमाली
अपनी हार देखकर भागा सुमाली(Sumali) पाताल लोक में जाकर छिप गया, एक बार जब वह धरती पर पहुंचा तो उसकी नजर कुबेर पर पड़े, जिन्हें देखकर सुमाली देवताओं के भय से वापस पाताल में जाकर छिप गया, लेकिन वह यही सोचता रहा कि देवताओं से इसका बदला कैसे लिया जाए. उसके दिमाग में एक युक्ति आई और उसने अपनी पुत्री कैकसी से कहा कि विवाह का प्रस्ताव लेकर तुम विश्रवा के पास जाओ. अगर उनसे विवाह कर लिया तो राक्षस कुल विनाश से बच जाएगा.
ऐसे हुआ रावण का जन्म
ऐसा सुनकर कैकसी ऋषि विश्रवा के पास पहुंच गई, शाम के वक्त जब ऋषि के पास पहुंची और उन्हें रिझाने की कोशिश की तो ऋषि शुरुआत में नहीं माने लेकिन बाद में ऋषि ने कैकसी की सारी बात मान ली. ऋषि ने बताया कि अशुभ मुहूर्त संबंध बनाने से असुर पैदा होगा, जिसके बाद रावण का जन्म हुआ और फिर बाद में कुंभकर्ण, विभीषण और शूर्पणखा को कैकसी ने जन्म दिया.
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रावण ने घोर तपस्या से प्राप्त की कई शक्तियां
रावण(Ravana) जब थोड़ा बड़ा हुआ तो अपने नाना सुमाली के पास गया जहां सुमाली ने कहा कि तपस्या कर इतनी शक्तियां प्राप्त कर लो कि देवता भी तुम्हें नहीं हरा सके और राक्षसों को लंका मिल जाए. बाद में रावण घोर तपस्या की, वह भगवान शिव का परम भक्त माना जाता है. सभी शक्तियों को प्राप्त करने के बाद रावण ने चढ़ाई कर कुबेर से लंका(Lanka) वापस ले ली और फिर पराक्रमी होने के साथ-साथ उसका आतंक बढ़ता गया. त्रेतायुग में जब श्रीराम(Shri Ram) ने अवतार लिया तब जाकर रावण के साथ ही उसके आतंक का खात्मा हुआ.
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