केयूरिणं हारकिरीटजुष्टं चतुर्भुजं पाशवराभयानि।
सृणिं वहन्तं गणपं त्रिनेत्रं सचामरस्त्रीयुगलेन युक्तम्॥
Shri Varadvinayak Mandir: अष्ट विनायक में चौथे गणेश हैं श्री वरदविनायक। ये मंदिर महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के कोल्हापुर क्षेत्र में एक सुन्दर पर्वतीय गांव है महड़। इसी गांव में श्री वरदविनायक मंदिर स्थित है। यहां प्रचलित मान्यता के अनुसार वरदविनायक (Shri Varadvinayak Mandir) भक्तों की सभी कामना को पूरा होने का वरदान प्रदान करते हैं। इस मंदिर में नंददीप नाम का एक दीपक है जो 1892 से लगातार प्रज्जवलित है। कहते हैं कि वरदविनायक का नाम लेने मात्र से ही सारी मनोकामनाओं को पूरा होने का वरदान प्राप्त होता है। इस मंदिर में माघी चतुर्थी पर विशेष पूजा होती है इसके अतिरिक्त भाद्रपद की गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक भी विशेष उत्सव होता है जिसे देखने के लिए भक्तों का हुजूम उमड़ता है।
वरदविनायक मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा:
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में एक संतानहीन राजा था। अपने दुख के निवारण के लिए वो ऋषि विश्वामित्र की शरण में गया और सलाह मांगी। ऋषि ने उसे श्री गणेश के एकाक्षरी मंत्र का जाप करने के लिए कहा। राजा ने ऐसा ही किया और भक्ति भाव से गजानन की पूजा करते हुए उनके मंत्र का जाप किया। मंत्र के प्रभाव और गणपति के आशीर्वाद से उसका रुक्मांगद नाम का सुंदर पुत्र हुआ जो अत्यंत धर्मनिष्ठ भी था। युवा होने पर एक बार शिकार के दौरान जंगल में घूमते हुए रुक्मांगद, ऋषि वाचक्नवी के आश्रम में पहुंचा। यहां ऋषि की पत्नी मुकुंदा राजकुमार के पुरुषोचित सौंदर्य को देख कर उस पर मोहित हो गई और उससे प्रणय याचना की। धर्म के मार्ग पर चलने वाले रुक्मांगद ने इसे अस्वीकार कर दिया और तुरंत आश्रम से चला गया।
यहां पढ़ें:इस मंदिर में आम आदमी की तरह धोती-कुर्ते में विराजमान हैं भगवान श्री गणेश
दूसरी ओर ऋषि पत्नी उसके प्रेम में पागल जैसी हो गई। उसकी अवस्था के बारे में जान कर देवराज इंद्र ने इसका लाभ उठाने के लिए रुक्मांगद का भेष धारण कर मुकुंदा से प्रेम संबंध बनाये, जिससे वो गर्भवती हो गई। कुछ समय बाद उसने ग्रिसमाद नामक पुत्र को जन्म दिया। युवा होने पर अपने जन्म की कहानी जान कर इस पुत्र ने मुकुंदा को श्राप दिया कि वो कांटेदार जंगली बेर की झाड़ी बन जाये। इस पर मुकुंदा ने भी अपने बेटे को श्राप दिया कि वो एक क्रूर राक्षस का पिता बनेगा।
उसी समय एक आकाशवाणी से पता चला कि मुंकुदा की संतान का पिता वास्तव में इंद्र है। दोनों माता और पुत्र अत्यंत लज्जित हुए और मुकुंदा एक कांटेदार झाड़ी में बदल गई जबकि उसका पुत्र पुष्पक वन में जाकर श्री गणेश की तपस्या करने लगा। बाद में प्रसन्न हो गणेश जी ने उसे त्रिलोकविजयी संतान का पिता बनने और एक वर मांगने का आशीर्वाद दिया। तब ग्रिसमाद ने कहा कि वे स्वयं यहां विराजमान हों और प्रत्येक भक्त की मनोकामना पूर्ण करें। इसके बाद उसने भद्रका नाम से प्रसिद्ध स्थान पर मंदिर का निर्माण किया और श्री गणेश यहां वरदविनायक के रूप में प्रतिष्ठित हुए।
यहां पढ़ें: गुफा में विराजमान है गणपति, यहां शिवजी ने काटा था गणेश का सिर
काफी मनमोहक है वरदविनायक मंदिर:
वर्तमान वरदविनायक मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण 1725 में सूबेदार रामजी महादेव बिवलकर ने करवाया था। मंदिर का परिसर सुंदर तालाब के एक किनारे बना हुआ है। ये पूर्व मुखी अष्टविनायक मंदिर पूरे महाराष्ट्र में काफी प्रसिद्ध है। यहां गणपति के साथ उनकी पत्नियों रिद्धि और सिद्धि की मूर्तियां भी स्थापित हैं। मंदिर के चारों तरफ चार हाथियों की प्रतिमायें बनाई गई हैं। मंदिर के ऊपर 25 फीट ऊंचा स्वर्ण शिखर निर्मित है। नदी तट के उत्तरी भाग पर गौमुख है। मंदिर के पश्चिम में एक पवित्र तालाब बना है। मंदिर में एक मुषिका, नवग्रहों के देवताओं की मूर्तियां और एक शिवलिंग भी स्थापित है। अष्टविनायक वरदविनायक मंदिर के गर्भगृह में भी श्रद्धालुओं को जाने की अनुमति है।
यहां पढ़ें: मोरेगांव स्थित गणेश धाम, इसी मंदिर की वजह से पड़ा भगवान गणपति का ‘बाप्पा मोरया’ नाम!
अधिक रोचक जानकारी के लिए डाउनलोड करें:- OTT INDIA App
Android: http://bit.ly/3ajxBk4