आज बात करेंगे श्री शैलम भ्रमराम्बा शक्तिपीठ की। आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद, यहां से 250 किलोमीटर दूर कुर्नूल के पास स्थित है मां श्री शैलम भ्रमराम्बा शक्तिपीठ। ‘श्री शैल शक्तिपीठ’ भारतवर्ष के अज्ञात 108 एवं ज्ञात 51 पीठों में से एक है। इसका हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। कहा जाता है कि यहाँ माता सती की ग्रीवा (गर्दन) गिरी थी। बता दें कि हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आए। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाए। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं।
देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन मिलता है। यहाँ की सती ‘महालक्ष्मी’ तथा शिव ‘संवरानंद’ अथवा ‘ईश्वरानंद’ हैं। श्री शैल को “दक्षिण का कैलाश” और साथ ही ‘ब्रह्मगिरि’ भी कहते हैं। इसी स्थान पर भगवान शिव का मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग भी है। भगवान् शिव के पावन धाम, ‘श्रीशैलम’ में ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ के दिव्य संगम के कारण यह ‘सिद्धि क्षेत्र’ भी कहलाता है। यहाँ श्रीशैलम मंदिर में ‘मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग’ और ‘भ्रमराम्बा शक्तिपीठ’ एक ही स्थान पर विद्यमान हैं। यहाँ के मुख्य आराध्य ‘श्री मल्लिकार्जुन स्वामी’ और आराध्या ‘माँ भ्रमराम्बा’ हैं। भक्तजन ‘श्रीशैलम भ्रमराम्बा मंदिर’ को केवल ‘शक्तिपीठ’ ही नहीं, अपितु ‘भक्तिपीठ’ भी मानते हैं।
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कैसे हुई भ्रमराम्बा की उत्पत्ति ?
भ्रमराम्बा (भ्रामरी) का अर्थ है, ‘मधुमक्खियों की माता’। एक समय ‘अरुणासुर’ नामक एक राक्षस ने संपूर्ण विश्व पर अपना अधिपत्य कायम कर लिया था। अरूणासुर ने गायत्री मंत्र का निरंतर जाप करते हुए, उसने लंबे समय तक कठोर तपस्या की और अंततः ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया। जब ब्रह्मा जी नेअरुणासुर से मनचाहा वर माँगने को कहा तो उसने यह इच्छा व्यक्त की कि कोई भी दो पैरों या चार पैरों वाला जीव उसका वध न कर सके।
ब्रह्मा जी ने उसे यह वरदान दे दिया, जिससे सभी देवता भयभीत हो गए और माँ आदि शक्ति की शरण में पहुँचे और उनसे सुरक्षा माँगी। देवताओं की प्रार्थना पर माता प्रकट हुई और उन्हें बताया कि अरुणासुर उनका भक्त है। इसलिए जब तक वह उनकी पूजा करना बंद नहीं करता, वे उसका वध नहीं कर सकतीं। तब देवताओं ने एक युक्ति सोची, जिसके अनुसार देवगुरु बृहस्पति अरुणासुर से मिलने पहुँचे। देवगुरु को देख दैत्य अरुणासुर चकित हो गया और उसने उनके वहाँ आने का कारण पूछा। तब देवगुरु बृहस्पति ने अरुणासुर से कहा कि उनके वहाँ उससे मिलने आने में कोई विस्मय नहीं है क्योंकि वे दोनों एक ही देवी अर्थात ‘माँ गायत्री’ की पूजा करते हैं। यह सुनकर अरुणासुर लज्जित हो गया और सोचने लगा कि जिस देवी की पूजा देवता करते हैं, उसकी पूजा वह कैसे कर सकता है।
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अरुणासुर ने उसी क्षण माता की पूजा करना छोड़ दिया। उसके ऐसा करने से माँ आदि शक्ति क्रोधित हो गईं और उन्होंने भ्रामरी (भ्रमराम्बिका) का रूप धारण कर लिया। उन्होंने छह पैरों वाली असंख्य मधुमक्खियों की उत्पत्ति की और उन सारी मधुमक्खियों ने कुछ ही क्षणों में अरुणासुर का वध करके उसकी पूरी सेना का भी विध्वंस कर दिया।
नवरात्र पर होता है विशेष पूजन
श्री शैल शक्ति पीठ में सभी त्यौहार मनाये जाते है, विशेष कर दुर्गा पूजा और नवरात्र के त्यौहार पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इन त्यौहारों के दौरान, कुछ लोग भगवान की पूजा के प्रति सम्मान और समर्पण के रूप में व्रत (भोजन नहीं खाते) रखते हैं। त्यौहार के दिनों में मंदिर को फूलो व लाईट से सजाया जाता है। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं के दिल और दिमाग को शांति प्रदान करता है।
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