दुनियाभर में कोरोना महामारी के बीच वैक्सीन पासपोर्ट को लेकर चर्चा तेज़ हो गई है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने भी वैक्सीन पासपोर्ट की वकालत की है। वहीं भारत ने G7 समिट से पहले इसे लेकर चिंता जताई है।
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डॉ. हर्षवर्धन ने जताई कड़ी आपत्ति
इसी के मद्देनजर G-7 प्लस मिनिस्टर लेवल के सेशन में हेल्थ मिनिस्टर डॉ. हर्षवर्धन ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा है कि अभी वैक्सीन पासपोर्ट को अनिवार्य करना सही नही होगा। इस तरह की पहल भेदभावपूर्ण साबित हो सकती है। इसकी वजह क्या है? दरअसल, विकसित देशों के मुकाबले विकासशील देशों में अभी लोगो के वैक्सीनशन का प्रतिशत काफी कम है। ऐसी स्थिति में इस तरह की कोई भी पहल ऐसे देशों के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है।
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आखिर वैक्सीन पासपोर्ट का माजरा क्या है?
कोरोना के इस दौर में कई ऐसे देश है , जिन्होंने संक्रमण के डर से आपने देशों में बाहर से आने वाले यात्रियों के प्रवेश पर पावंदी लगा दी है। वहीं जिन देशों में प्रवेश की अनुमति है तो वहाँ उन्हें पहले क्वारैंटाइन होना पड़ता है। वहीं अगर वैक्सीन पासपोर्ट लागू हुआ तो यात्रियों को इस क्वारैंटाइन से छुटकारा मिल जाएगा|
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ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने दिया था प्रस्ताव
बोरिस जॉनसन ने संकेत दिए थे कि G-7 सम्मेलन के दौरान वैक्सीन पासपोर्ट को लेकर सहमति बनाने की कोशिश की जा सकती है। उनका प्रस्ताव इंटरनेशनल ट्रैवल को आसान बनाने का है, लेकिन इसमें अभी कई समस्याएं हैं। कई देश ऐसे भी हैं जहां पर अभी मैन्युफैक्चरिंग या फिर अन्य समस्याओं की वजह से वैक्सीनेशन पूरी रफ्तार नहीं पकड़ सका है।
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भारत में भी वैक्सीनेशन की रफ्तार धीमी
भारत में अब तक 18 करोड़ 16 लाख 78 हजार 744 लोगों को वैक्सीन का पहला डोज दिया जा चुका है। इनमें से सिर्फ 4 करोड़ 58 लाख 89 हजार 129 लोगों को ही दूसरी डोज दी जा चुकी है। यह भारत की कुल आबादी का सिर्फ 3.3% है। इसलिए वैक्सीन पासपोर्ट की अनिवार्यता से दुनिया की सबसे बड़ी आबादी पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा।
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